Saturday, September 11, 2010

जयपुर के सांगानेर में रंगाई-छपाई की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज प्रकृति के लिए काल बनने का काम कर रहे हैं।

सांगानेर। प्रदेश के लिए अमृत समान महत्वपूर्ण माना जाने वाला पानी सांगानेर में प्रदूषण की समस्या का सबसे ज्यादा सामना कर रहा है। वस्त्र नगरी में चल रहे 750 रंगाई-छपाई की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज से निकलने वाला यह पानी अपनी प्रवृति इतनी अधिक बदल चुका है कि इसका नाम ही काला पानी पड़ गया है। सरकार और जिला प्रशासन ने जल्दी ही प्रदूषण को रोकने का इंतजाम नहीं किया तो यह सांगानेर के जनजीवन के लिए निश्चित ही बहुत घातक सिद्ध होगा।
जयपुर के सांगानेर में रंगाई-छपाई की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज प्रकृति के लिए काल बनने का काम कर रहे हैं।
ये बने हैं जान के लिए जोखिम
काले पानी को डिसॉल्व्ड सॉलिड, सल्फेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, नाइट्रोजन, हार्डनेस और कैल्शियम की अधिक मात्रा मिलकर घातक बनाती है। इसको किसी भी प्रकार से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। जानवर इसको पीकर मौत के मुँह में भी जा सकता है।

जयपुर के सांगानेर में रंगाई-छपाई की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज से निकलने वाले पानी को जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा पूर्व में ही खतरनाक घोषित किया जा चुका है, क्योंकि यह वॉटर एक्ट के मापदण्डों पर खरा नहीं माना गया था।

Brij Ballabh Udaiwal
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Sunday, September 5, 2010

स्क्रीन प्रिंटिंग इस क्षेत्र के मुख्य प्रदूषक हैं, तो फिर सांगानेरी हैण्ड ब्लॉक प्रिंट को क्यों दंडित किया जाना चाहिए ?

द्रव्यवती नदी, उर्फ अमानी शाह का नाला में डाई वेस्ट वॉटर क्या आप जानते हैं जान लेवा बन रहा है पानी

कभी यह नदी जयपुर की जीवनरेखा थी। लेकिन आज गन्दा नाला है जिसमे आधे जयपुर का मलमूत्र और विश्वकर्मा,झोटवारा,करतारपुरा,सुदर्शनपुरा,मानसरोवर ओद्योगिक क्षेत्रो के साथ ही डालडा फेक्ट्री का भी पानी भी इसी नाले में आता है लेकिन श्री विजय सिंह पुनिया, राजस्थान प्रदुषण नियंत्रण मंडल एवं राजस्थान सरकार को सिर्फ सांगानेर का छपाई एवं रंगाई उद्योग ही नाले में दूषित पानी छोड़ने के लिये दोषी नज़र आया जिसके परिणाम स्वरुप आज विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाले एवं तीन लाख लोगो को रोजगार देने वाले 500 वर्ष पुराने औद्योगिक शहर पर गाज गिरने की नोबत आ गई है।


सांगानेर गांव के पुराने छपाई वाले बताते हैं कि इस नदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कच्चा बंधा, रावल जी का बंधा, हाथी बाबू का बांध, ख्वास जी का बांध, गूलर बांध एवं रामचन्द्रपुरा का बांध सिंचाई के मकसद से ही बनाए गए।



नदी के क्षेत्रफल को परिभाषित करने वाले नदी के किनारों पर पिलर लगा दिए गए और सरकार ने आदेश जारी किए कि इस क्षेत्र के अंदर कोई भी निर्माण अवैध माना जाएगा। परन्तु सरकार एवं उसके विभिन्न विभागों तथा निकायों द्वारा इस नदी के संरक्षण संवर्धन के नाम पर जो प्लान बनाये गए है , उनमें भारी अनियमितताओं को देख कर लगता है कि ''सरकार स्वयं ही इस नदी को नाले में तब्दील करने पर अमादा है



सांगानेर स्थित रंगाई-छपाई की टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में कपड़ों को रंगने की प्रक्रिया में लाखों लीटर पानी प्रयोग किया जाता है। यूनिटों से रोजाना लाखों लीटर डाई वेस्ट वॉटर निकलकर अमानीशाह नाले या सड़क किनारे फैल रहा है। इनसे निकलने वाले प्रदूषित जल से न केवल जल प्रदूषण, बल्कि वायु प्रदूषण भी हो रहा है। इतना ही नहीं इन इकाइयों से निकलने वाला पानी जहां से होकर गुजर रहा है, वहां की जमीन की उपज क्षमता कम हो रही है। ऎसे में काफी समय से इस प्रदूषण को खत्म करने की मांग चली आ रही है। सांगानेर, मुहाना मोड़, बालावाला व आस-पास के इलाकों में स्थित रंगाई-छपाई के कारखानों का केमिकल युक्त पानी कुछ ही दिनों में लोहे को भी गलाने की क्षमता रखता है।



इस पानी में बीओडी, सीओडी, टीडीएस और टीएसएस जैसे हारिकारक कैमिकल और कई हैवी मैटल्स हैं। यह न सिर्फ पर्यावरण, कृषि और पशु-पक्षियों के लिए नुकसानदायक है, बल्कि आसपास के खेतों में होने वाली फसलों का सेवन करने वालों में इससे गम्भीर बीमारियां भी हो रही हैं।



ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने से रंगाई-छपाई के बाद बहने वाला पानी पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। इससे भी बड़ा खतरा इस पानी के उपयोग से पैदा होने वाले फल-सब्जी तथा फसलों के उपयोग से होने वाले विभिन्न जानलेवा रोग हैं।



पानी की कमी और प्रदूषण के कारण भूजल में फ्लोराइड की मात्रा काफी बढ़ गई है, हैपेटाइटिस-ई जो दूषित जल से फैलता है, जिसके कारण लोगों के हाथ-पैर टेढ़े हो गए हैं। व्यक्ति पर 40 की उम्र में ही 60 जैसा असर दिखने लगता है। फ्लोराइड का असर दांतों पर ही नहीं पूरे शरीर पर पड़ता है।



सरकार की ढिलाई से सांगानेरी प्रिंट उद्योग पर संकट खड़ा हो गया है।



पर्यावरण मापदंडों पर खरा नहीं उतरने के कारण प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 750 रंगाई-छपाई फैक्ट्री मालिकों को फैक्ट्री बंद करने के नोटिस जारी कर दिये है। बिजली कंपनी एवं जलदाय विभाग को इन फैक्ट्रियों के बिजली—पानी के कनेक्शन काटने को कहा गया है। मंडल ने जिला कलेक्टर को फैक्ट्री बंद नहीं करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को भी लिख दिया है।



इन इकाइयों में दुनिया भर में प्रसिद्ध सांगोनरी छपाई व रंगाई का काम किया जाता है। सांगानेरी प्रिंट का उपयोग बेडशीट बनाने के साथ गारमेंट में होता है। इनका सालाना कारोबार लगभग सात सौ करोड़ रुपये हैं, जबकि सालाना तीन सौ करोड़ रुपये की सांगानेरी प्रिंट बेडशीट और गारमेंट का निर्यात किए जा रहे हैं।



इकाइयों को बंद करने के नोटिस पर अब अमेरिका, इंग्लैंड में भी चिंता महसूस की जा रही है। इन देशों में रहने वाले आयातक राजस्थानी प्रदेश की शान माने जाने वाले जयपुर के इस उद्योग पर आए संकट से आहत हैं।



सुप्रीम कोर्ट का फैसला हक में आने के बावजूद सांगनेर में लगी रंगाई-छपाई इकाइयां मुश्किल दौर से गुजर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2009 में सांगानेर की इकाइयों के हक में फैसला सुना दिया था और इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दिए थे। इन इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित पानी के लिए सांगानेर में दो प्लांट लगाना तय किया है।



इन प्लांटों पर कुल 46 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इस लागत की 75 फीसदी राशि केंद्र सरकार और 10 फीसदी राशि राज्य सरकार को वहन करनी है। शेष राशि उद्यमियों को लगानी है। यह प्लांट लगने के बाद ही सांगानेर की इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति मिलनी है। लेकिन उद्यमियों की तमाम कोशिशों के बावजूद न तो ट्रीटमेंट प्लांट लग पाया है और ना ही भू उपयोग बदलने की अनुमति मिल सकी है। इसके चलते सांगानेर की इकाइयों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है।



पिछले वर्ष दुनिया भर में आर्थिक सुस्ती की वजह से निर्यात और घरेलु कारोबार प्रभावित होने से सांगानेर स्थित इकाइयों की वित्तीय हालात खराब हो गई है, जबकि औद्योगिक भूमि में नहीं होने से इन इकाइयों को बैंकों से लोन भी नहीं मिल पा रहा है। उद्यमी लगातार सरकार को समस्याओं से अवगत करा रहे हैं। लेकिन जयपुर विकास प्राधिकरण व उद्योग विभाग के ढीले रवैये के कारण इन इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं मिल सकी है। अब यह दोनो विभाग यह कह रहे हैं, कि जब तक ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लग जाता है भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं मिल सकती।



अब अंडरटेकिंग का ही सहारा



पर्यावरण मापदंडों पर खरा नहीं उतरने के कारण प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 750 रंगाई-छपाई फैक्ट्री मालिकों को फैक्ट्री बंद करने की अब तक सबसे बड़ी कार्यवाही के बाद उद्योग ने 14 महीने का समय माँगा है । इसके लिए उद्यमियों से मंडल द्वारा व्यक्तिगत अंडरटेकिंग मांगी जा रही है । इसके बावजूद विद्युत विभाग ने 15 दिन में विद्युत सम्बन्ध विच्छेद करने के आदेश पारित कर दिए है । इस प्रकार की दोहरी नीतियाँ दर्शाती है की सरकार की मंशा में खोट है वो इस बहाने अपने वोट बैंक को भी बचाके रखना चाहती है और मंडल को उद्यमियों की सम्पूर्ण सूची भी उपलब्ध करना चाहती है तथा यूँ भी कह सकते है कि इस सबके पीछे विदेशी हाथ भी हो सकते है जो सरकार के साथ मिलकर इस उद्योग को बंद कर यंहा पर सस्ती दरो में कमर्शियल उपयोग के लिए जमीने लेना चाहते हों ।



एकता के अभाव में टाइम पास प्रोग्राम



जानकारों का मानना है कि अंडरटेकिंग देना रंगाई - छपाई से जुड़े उद्यमियों का टाइम पास प्रोग्राम का एक और चरण है क्योंकि न तो उद्यमी एक मंच पर इकट्ठे होंगे और न ही प्लांट के लिये धन इकठ्ठा होगा। क्योंकि कोई भी उधमी इस संकट को गंभीरता से नहीं ले रहा है चाहे वो धुलाईवाला है छपाईवाला है या रंगाईवाला है सबका कहना है कि जो सबके साथ होगा वो हम भी भुगत लेंगे। कहने का अभिप्राय यह है कि एकता के अभाव तथा कुछ लोगो के स्वार्थ के कारन तीन लाख लोगो के स्वरोजगार के साथ कुठाराघात हो रहा है जिसमे सबसे ज्यादा उन लोगो का मरण है जो किराये के कारखानों में अपनी इकाई चलाते है एवं आर्थिक कमजोर है। हो सकता है एकबारगी जो लोग धनाढ्य वो तो अपने आप को अन्यत्र स्थापित कर सकते है लेकिन गरीबों का कोन धणी होगा इसका उत्तर किसी के पास नहीं है।


हमारा कसूर क्या है ? हम कोशिश तो कर रहे है


सरकार इस मसले पर खुद ही गंभीर नहीं है और अपनी ढिलाई का ठीकरा रंगाई - छपाई व धुलाई वालीं के सर फोड़ना चाहती है । ट्रीटमेंट संयत्र कि फिजिबिलिटी के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में प्रदुषण मंडल और सरकार ने ही अपनी सहमती दी थी, उसी के आधार पर 30 अप्रेल 2009 को फैसला हुआ, तीन साल का समय मिला लेकिन इस समय में न तो उद्यमियों और न ही सरकार कि तरफ से कोई त्वरित और ठोस कार्यवाही हुई जिसका नतीजा है कि आज उपक्रम बंद करने कि नोबत आ गई है जिससे कुल मिलाकर यह है कि तीन लाख लोगो कि रोजी रोटी पर बन आई है



पारम्परिक अद्वितीय सांगानेरी ब्लॉक प्रिंट के लिए भी खतरा



हाथ ब्लॉक छपाई भारत में सदियों पुरानी परंपरा है.लगभग 500 वर्ष पुराना है,



हाथ ब्लॉक छपाई शिल्प एक विरासत के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.


हाथ ब्लॉक छपाई में सीमित उत्पादन और गहन मानव इनपुट है,



सीमित पानी,, प्राकृतिक रंजक के साथ बना, सांगानेरी हैण्ड ब्लॉक प्रिंटेड एक ब्रांड नाम हैं, परंपरागत शैली के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता है.



हैण्ड ब्लॉक प्रिंट से सांगानेर में कार्यरत 350 इकाइयाँ लगभग 3000 परिवारों को रोजगार प्रदान करती हैं.20,000 लोग इस शिल्प पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर है.



सांगानेरी ब्लॉक प्रिंट में सीमित पानी की आवश्यकता होती है, प्रदूषण प्रबंधनीय सीमा के भीतर है. "Azo मुक्त रसायनों का प्रयोग, प्राकृतिक रंजक, यह पर्यावरण के अनुकूल है.



स्क्रीन प्रिंटिंग इस क्षेत्र के मुख्य प्रदूषक हैं, तो फिर सांगानेरी हैण्ड ब्लॉक प्रिंट को क्यों दंडित किया जाना चाहिए ?

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Thursday, September 2, 2010

द्रव्यवती नदी, उर्फ अमानी शाह का नाला

कभी यह नदी जयपुर की जीवनरेखा थी। जयपुर शहर के उत्तर-पश्चिम से निकलकर पश्चिम-दक्षिण होती हुई, ढूण्ड नदी में मिलने वाली, द्रव्यवती नदी, उर्फ अमानी शाह का नाला, जयपुर शहर की जीवनरेखा रही है। सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित सन् 1865-66 के नक्शों में भी इस नदी को साफ तौर पर दर्शाया गया है। उसके बाद भी सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित नक्शों में नदी साफ तौर पर चिन्हित है। यदि नदी कहीं नहीं है, तो राजस्थान सरकार के राजस्व विभाग के रिकार्ड में।
देखने में यह आया कि पानी की कमी और प्रदूषण के कारण भूजल में फ्लोराइड की मात्रा काफी बढ़ गई है, जिसके कारण लोगों के हाथ-पैर टेढ़े हो गए हैं।
मजे की बात यह रही कि सरकार आंकड़ों से भी द्रव्यवती नदी का नाम गायब होने लगा था। 1981 के एक सर्वे में बाकायदा इस नदी का नाम अमानीशाह नाला रख दिया गया। अमानीशाह नाले को सरकार नदी के रूप में स्वीकार करे और नदी का एक मानचित्रीकरण हो ताकि इसके पेटे में आवासीय कॉलोनियां और बस्तियों को बसने से रोका जा सके। सरकार ने इसके लिए एक प्लान बनाया। नदी का सर्वे करके और पुराने आंकड़ों के आधार पर चिन्हीकरण हुआ। नदी के क्षेत्रफल को परिभाषित करने वाले नदी के किनारों पर पिलर लगा दिए गए और सरकार ने आदेश जारी किए कि इस क्षेत्र के अंदर कोई भी निर्माण अवैध माना जाएगा।
फरवरी 2007 में सरकार ने दुबारा फिर सर्वे किया है और नदी की चौड़ाई सरकार ने काफी कम कर दी है। यह सारा काम भू-माफियाओं के दबाव में किया जा रहा है। भू-माफिया और रीयल एस्टेट बिल्डर्स नदी के पेटे और खादर क्षेत्र में निर्माण काम कर रहे हैं, जो सरकार पर दबाव बनाकर के नदी की चौड़ाई कम कराने में सफल रहे हैं।
सरकार एवं उसके विभिन्न विभागों तथा निकायों द्वारा इस नदी के संरक्षण संवर्धन के नाम पर जो प्लान बनाये, उनमें भारी अनियमितताओं को देख लगता है कि ''सरकार स्वयं ही इस नदी को नाले में तब्दील करने पर अमादा है

द्रव्यवती नदी के किनारे पुराने रजवाड़ों का बंगला, बोट हाउस के साथ ही नदी पर बने कई बांध और बांध से निकली नदियां गवाह हैं कि द्रव्यवती नदी सदानीरा हुआ करती थी।
नदियों के मामले में सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि केंद्रीय जल आयोग की परिभाषाओं में सिर्फ बड़ी नदियां ही नदी मानीं जाती हैं। केंद्रीय जल आयोग ने राजस्थान में सिर्फ चम्बल को ही नदी के रूप में चिन्हित कर रखा है। हजारों छोटी नदियों के संबंध में कोई भी आयोग, बोर्ड, कमीशन कुछ भी नहीं है। राजस्थान में बीकानेर और चुरू को छोड़कर कोई ऐसा जिला नहीं है जहां नदियां न हों। हमें इन छोटी नदियों को जिंदा रखना होगा। जिन्दा इसलिए भी रखना होगा कि ये नदियां सिर्फ पानी का प्रवाह ही नहीं करतीं, बल्कि भूमिगत धाराओं को भी जिंदा करती हैं। अगर ये छोटी नदियां मरती हैं तो भूमिगत धाराएं भी मर जाएंगी। छोटी नदियों का दोहरा महत्व है। जमीन के नीचे की धारा को जिंदा रखने के लिए ऊपर की धारा जिंदा होनी चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति में जब मौसम अनियमित हो जाएगा। अत्यधिक वर्षा, अत्यधिक सूखा, अत्यधिक तूफान इन सबमें छोटी नदियाें की जरूरत होगी। अधिक वर्षा की स्थिति में ये छोटी नदियां बाढ़ के पानी को बहाकर नीचे ले जाएंगी और सूखे की स्थिति में जमीन की नमी बनाए रखने में योगदान करेंगी। जमीन की नमी से ही पेड़-पौधाें का जीवन है। पेड़-पौधों से ही पर्यावरण और पर्यावरण, वन्य जीवन, प्रकृति, मानव अस्तित्व संभव है। बाड़मेर में आई बाढ़ इसका ज्वलंत उदाहरण है। बाड़मेर की कवास नदी जो पूरी तरह मर चुकी है और उसके पेटे में आवासीय कॉलोनियां बस गई हैं, यही वजह हुई कि थोड़ा भी ज्यादा पानी बरसा तो पूरा बाड़मेर डूब गया।
जमीन की यह भूख क्यों है? क्या जनसंख्या वृध्दि ही मुख्य कारण है? पर मैं तो इससे बड़ा कारण शहरी भूमि हदबंदी सीमा का खत्म होना मानता हूं। पहले जयपुर में मात्र 500 वर्ग मीटर अधिकतम भूमि सीमा था। इससे ज्यादा जमीन कोई नहीं रख सकता था, पर अब तो जयपुर विकास प्राधिकरण ही 1500 वर्ग मीटर के प्लॉट बेच रहा है। पहले लोग शेयर और गोल्ड में निवेश करते थे, अब तो भूमि में कर रहे हैं। परिणाम सामने है कि पूरा देश रीयल एस्टेट के रूप में विकसित होने की दिशा में बन गया है।

जयपुर की जीवन रेखा- द्रव्यवती नदी उर्फ अमानीशाह नाला बचाने के लिए

जयपुर शहर को बसाने वालें ने, इसको परिस्थितिकी विज्ञान के अनुसार बहुत ही बढ़िया तरीके से बसाया। इसके उत्तर पूर्व से लेकर उत्तर पश्चिम तक पहाड़ हैं। जो कि किसी समय घने वृक्षों से ढके रहते थे। जिनके कारण मिट्टी का कटाव नहीं के बराबर था। शहर के पश्चिम में करीब तीन मील की दूरी पर एक नदी बहती है। जिसका उद्गम उत्तर की दिशा में स्थित नाहर गढ़ की पहाड़ियों, (अरावली) में स्थित विभिन्न कुंड हैं, जिनमें आथुनी का कुंड प्रमुख है। दूसरी धारा मायला बाग से आती हुई अमानीशाह दरगाह के पास आकर आथुनी के कुंड से आने वाली धारा में मिल जाती है। फिर यह धारा उत्तर से दक्षिण, पूर्व की तरफ मोड़ खाती हुई, शहर के पूर्वी भाग में बहने वाली ढूण्ड नदी में मिल जाती है, जो कि तत्पश्चात मोरल नदी में मिलती हुई राजस्थान की एक मुख्य नदी बनारस में जाकर मिलती है। उत्तर की दिशा में बहने वाली इस जलधारा को ही कई इतिहासकारों ने द्रव्यवती नदी के नाम से चिन्हित किया है। जानकारों का मानना है कि नदी की कुल लंबाई 40 किमी होगी। लेकिन कालान्तर में पहाड़ियों पर धीरे-धीरे जंगल खत्म हो जाने के कारण, नदी की धारा पतली होती चली गई। साथ ही इनके किनारे पर अमानीशाह नाम के फकीर का स्थान होने के कारण, बाद में इसे अमानीशाह नाला कहा जाने लगा। रास्ते में इस धारा में कई छोटे नाले और बरसाती धारायें आकर मिलती हैं।

इतिहासकार ए के राम (History of jaipur city) के अनुसार सन् 1920 तक जयपुर शहर के लिए पाइप द्वारा पीने के पानी की सप्लाई का एकमात्र स्रोत अमानीशाह का नाला ही था। शहर में काफी कुएं थे, लेकिन उनका पानी पीने के लिहाज से अच्छा नहीं माना जाता था। रामगढ़ बांध से, जयपुर शहर के लिए पानी की सप्लाई इसी नदी से होती थी। 1844 से 1853 तक इस धारा पर एक कच्चा बांध भी बनाया गया ताकि शहर की तरफ जाने वाली नहरों में पानी लाया जा सके। लेकिन यह बांध तकनीकी कारणाों से सिर्फ तीन साल चला। 1875 में फिर से एक बांध इस धारा पर बनाया गया और धारा के पूर्वी किनारो पर पम्प सेट स्थापित किए गए, जिनसे पानी एक टांके में इकट्ठा किया जाता और फिर पाइपों के जरिए शहर के विभिन्न भागों को सप्लाई किया जाता। फिर बांध के भराव के कारण (1896 में छप्पनिया अकाल पड़ा था) बांध के पेटे में ही कुएं (पम्प सेट) और टयूबवेल खोदे गए। जो कि आज तक मौजूद है, और काम कर रहे हैं। लेकिन समय के साथ-साथ जैसे 1958 और 1971-72 में इन कुओं का पानी निकालने की क्षमता बढ़ाई गई साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में इसके किनारे पर एवं इसके पेटे में नये टयूबवेल भी खोदे जाते रहे। धारा के किनारे पर घाट बनाए गए तथा बाग-बगीचे भी लगाए जाते रहे।

सांगानेर गांव के पुराने छपाई वाले बताते हैं कि इस नदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कच्चा बंधा, रावल जी का बंधा, हाथी बाबू का बांध, ख्वास जी का बांध, गूलर बांध एवं रामचन्द्रपुरा का बांध सिंचाई के मकसद से ही बनाए गए। सांगनोर स्थित गूलर का बांध एक क्पअपेवद कंउ है। जिससे पानी क्पअमतज होकर पश्चिम में स्थित नेवटा ग्राम के जलाशय, दक्षिण में खेतपुरा होता हुआ ग्राम चन्दलाई और उसके भर जाने के पश्चात चाकसू (जयपुर शहर से 40 किमी दूर) के पास स्थित शील की डूंगरी के जलाशय में जाता रहा है। खेतापुरा में ही रामचन्द्रपुरा बांध से, बिलवा होकर आने वाली नहर भी मिलती है। इन जलाशयों एवं नदी से सैकड़ों गांवों की हजारों बीघा जमीन में सिंचाई की जाती रही है।

डाई वेस्ट वॉटर भी हो सकता है रिसाइकल

Source: भास्कर न्यूज | Last Updated 09:10(07/06/10)

जयपुर. टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में कपड़ों को रंगने की प्रक्रिया में लाखों लीटर पानी प्रयोग किया जाता है। इस पानी में कटौती तो नहीं की जा सकती, लेकिन इस कैमिकल युक्त रंगीन पानी का रिसाइकल कर दुबारा काम में लिया जा सकता है। जल जागरण अभियान के तहत सिटी रिपोर्टर ने शहर के स्टूडेंट्स और उनके फै कल्टीज से बात की जिन्होंने इस पर रिचर्स की है और जाना कि डाई वेस्ट पानी को कैसा प्योरीफाई किया जा सकता है।

सरकार डाई वेस्ट वॉटर पर करे विचार

सांगानेर स्थित रंगाई-छपाई की 1३५ यूनिटों से रोजाना लाखों लीटर डाई वेस्ट वॉटर निकलकर अमानीशाह नाले या सड़क किनारे फैल रहा है। सरकार को इस वॉटर क ो प्यूरिफाइ करके प्योर वॉटर बनाने पर विचार करना चाहिए। यह कहना है शांति एजुकेशन सोसायटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट के कैमिस्ट्री डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. गौतम सिंह का। उन्होंने बताया कि इस पानी में बीओडी, सीओडी, टीडीएस और टीएसएस जैसे हारिकारक कैमिकल और कई हैवी मैटल्स होते हैं। यह न सिर्फ पर्यावरण, कृषि और पशु-पक्षियों के लिए नुकसानदायक है, बल्कि आसपास के खेतों में होने वाली फसलों का सेवन करने वालों में इससे गम्भीर बीमारियां भी हो सकती हैं।

सॉ-डस्ट से शुद्धीकरण सम्भव

डाई इंडस्ट्री से निकलने वाले गंदे पानी को कम लागत में रिसाइकल कर फिर से काम में लिया जा सकता है। यह कहना है शांति एजुकेशन सोसायटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के स्टूडेंट्स त्रिलोचन यादव, भाग्यश्री मेवाड़ा, समरिता गुप्ता और दीपक अतरे का। उन्होंने इसके लिए रिचर्स कर शुद्धीकरण का एक बेतहर तरीका खोजा। उन्होंने डाई वेस्ट वॉटर को रिसाइकल करने के लिए सॉ-डस्ट (लकड़ी का बुरादा) को एक जार में भरकर इसकी कुछ परतें बनाईं। फिर इसमें कैमिकल युक्त डार्क मेहरून डाई वेस्ट वॉटर डाला। थोड़ी देर में सॉ-डस्ट ने नेचुरल एडजॉर्डेंट की प्रक्रिया से कैमिकल्स को एब्जार्ब कर वॉटर को प्यूरिफाई कर दिया। इसका ओजोनीकरण करके या इसमें फिटकरी या क्लोरीन डालकर इसे बैक्टीरिया मुक्त कर साफ किया जा सकता है।

अमानीशाह नाले में अपनाएं यह प्रक्रिया

रिसर्च के गाइड डॉ. सारू गुप्ता और डॉ. गौतम ने बताया कि इस प्रक्रिया को अमानीशाह के नाले में अपनाकर रंगाई-छपाई की यूनिटों से निकलने वाले डाई वेस्ट वॉटर को शुद्ध और बैक्टीरिया मुक्त कर रिसाइकल किया जा सकता है। इसके लिए नाले में जहां यह डाई वेस्ट वॉटर आकर मिल रहा है, वहां सॉ-डस्ट के कॉलम (मोटी परतें) बनाए जाएं। इससे यह कॉलम नेचुरल एडर्सोडेंट प्रक्रिया से वॉटर में शामिल सभी कैमिकल्स और मैटल्स को एब्जार्ब कर वहीं रोक ले और पानी प्यूरिफाइड होकर आगे जाए। इस प्यूरिफाइड वॉटर को ओजोनीकरण विधि से बैक्टीरिया मुक्त करें।

फिर इसे रीयूज करने के लिए इसको आसपास के खेतों की ओर मोड़ा जा सकता है या किसी फैक्ट्री में इसका प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया से लाखों लीटर डाई वेस्ट वॉटर का सदुपयोग किया जा सकता है।


कहां करें इसका रीयूज

कृषि पैदावार के लिए इस पानी का प्रयोग कर सकते हैं। घर के लॉन में देने और गाड़ियों क ो धोने के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं। किसी भी इंडस्ट्री या सांगानेर की डाई इंडस्ट्री में भी फिर से प्रयोग कर सकते हैं।

शुद्धीकरण का फायदा

> नेचुरल रिसोर्सेज की बचत

> वॉटर ट्रीटमेंट के इलेक्ट्रो कैमिकल मैथड से सस्ता होता है।

> वुडन इंडस्ट्री के आसानी से और सस्ते में मिलने वाले वेस्ट सॉ-डस्ट का भी सही इस्तेमाल होता है।

> बड़ी इंडस्ट्रीज भी इस प्रक्रिया को अपनाएं तो बहुत अच्छा है।

क्या आप जानते हैं जान लेवा बन रहा है पानी

दूषित जल से सिंचिंत फसलों के इस्तेमाल से मनुष्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव

हैपेटाइटिस-ई जो दूषित जल से फैलता है,

शहर के अमानीशाह नाले व इंडस्ट्रियल एरिया में पानी में बहाए जाने वाले हैवी मैटल्स व डिस्चार्ज टॉक्सिक्स का इस्तेमाल सिंचाई में भी होता है। ऐसे में ये खतरनाक तत्व फल व सब्जियों के जरिए हमारे शरीर तक पहुंच जाते हैं।

सांगानेर में स्क्रीन रंगाई-छपाई उद्योगों से दूषित पानी / एवं मनुष्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव ?

ड्रिंकिंग वाटर में 1.5 पीपीएम फ्लोराइड की मात्रा का मानक सही है, लेकिन जो पानी हम पी रहे हैं उसमें ये संख्या 3 से 10 पीपीएम तक पहुंच गई है, जो कि क्षेत्र विशेष पर निर्भर है। जिसका दुष्प्रभाव कुछ ही वर्षों में हमारे शरीर पर साफ दिखाई देने लगता है। हड्डियां कमजोर पडऩे लगती हैं, व्यक्ति पर 40 की उम्र में ही 60 जैसा असर दिखने लगता है। फ्लोराइड का असर दांतों पर ही नहीं पूरे शरीर पर पड़ता है।

सांगानेर के आसपास के क्षेत्र में फ्लोराइड की समस्या विकट रूप ले चुकी है।

केमिकलयुक्त पानी वाल्व के पास आने से हड़कंप

भास्कर न्यूज
Tuesday, February 10, 2009 02:03 [IST]

जयपुर. सांगानेर क्षेत्र में रंगाई-छपाई के कारखानों से आने वाला दूषित पानी बीसलपुर पाइपलाइन के वाल्वों के आसपास जमा हो जाने से भविष्य में पाइपलाइन गलने का खतरा उत्पन्न हो गया है। भविष्य के खतरे को भांपते हुए सोमवार को जलदाय विभाग के इंजीनियरों में हड़कंप मच गया और पाइपलाइन के इर्द-गिर्द रंगाई-छपाई के कारखानों को चिह्न्ति करने का काम शुरू कर दिया गया। चिह्न्ति किए जाने की कार्रवाई के बाद इन कारखानों को नोटिस दिया जाएगा। साथ ही राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल को इनके खिलाफ पुख्ता कार्रवाई करने के लिए जलदाय विभाग पत्र लिखेगा।

सांगानेर, मुहाना मोड़, बालावाला व आस-पास के इलाकों में स्थित रंगाई-छपाई के कारखानों का केमिकल युक्त पानी पाइपलाइन के इर्द-गिर्द भरा हुआ है। यह केमिकल युक्त पानी लोहे को गलाने की क्षमता रखता है। अगर इनका रिसाव लगातार पाइपलाइन पर होता रहा तो आने वाले समय में गलने का खतरा हो सकता है।

भास्कर की खबर के बाद जलदाय विभाग ने सोमवार से ऐसे रंगाई-छपाई के कारखानों को चिह्न्ति करने का काम शुरू कर दिया है, जिनसे खतरनाक रसायन खुले में छोड़े जा रहे हैं। अधीक्षण अभियंता (बीसलपुर) सुबोध जैन ने बताया कि कारखानों को नोटिस दिए जाने के बाद अगर पाइपलाइन या वाल्व के आस-पास दूषित पानी आया तो संबंधित कारखाने के मालिक के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी।

बदलेगा सांगानेर का हवा-पानी

Wednesday, May 05, 2010, 00:05 hrs IST Daily news jaipur

जयपुर । बरसों से कपड़ा रंगाई-छपाई कारखानों के कारण प्रदूषण की मार झेल रहे सांगानेर वासियों को जल्द ही राहत मिलने जा रही है। कस्बे व आसपास स्थित रंगाई-छपाई कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को साफ कर प्रदूषण मुक्त किया जाएगा। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाएगा और इसके लिए आवश्यक जमीन भी ढूंढ ली गई है। इस संबंध में विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बना ली गई है, जिसे शीघ्र ही मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा।

सूत्रों के अनुसार सांगानेर कस्बे व आसपास के इलाके में कपड़ा रंगाई व छपाई की लगभग 500 से 600 औद्योगिक इकाइयां हैं। इनसे निकलने वाले प्रदूषित जल से न केवल जल प्रदूषण, बल्कि वायु प्रदूषण भी हो रहा है। इतना ही नहीं इन इकाइयों से निकलने वाला पानी जहां से होकर गुजर रहा है, वहां की जमीन की उपज क्षमता कम हो रही है। ऎसे में काफी समय से इस प्रदूषण को खत्म करने की मांग चली आ रही है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने कॉमन फैसीलिटी सेंटर बनाने की सलाह दी थी। इसके बाद प्लांट की प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार हो चुकी है और संभवत: हफ्तेभर में उद्योग विभाग को सौंपी जाएगी।

मिलेगी सरकारी सहायता

ट्रीटमेंट प्लांट के लिए सहायता प्राप्त करने के लिए व्यापारियों के पास दो रास्ते हैं। एक तो केंद्रीय उद्योग मंत्रालय से प्लांट के लिए 75 प्रतिशत राशि मिलती है तथा 25 प्रतिशत व्यापारियों को देनी पड़ती है। यदि ऎसा नहीं हो पाता तो दूसरी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की योजना है। इसके तहत 25 प्रतिशत राशि केंद्र, 25 प्रतिशत राज्य सरकार तथा 50 प्रतिशत व्यापारियों को देनी पड़ती है। व्यापारी अभी सहायता प्राप्त करने की जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं।

ट्रस्ट करेगा संचालन

ट्रीटमेंट प्लांट के सुचारू संचालन के लिए ट्रस्ट बनाया जाना जरूरी है और इसके लिए व्यापारियों ने कवायद शुरू कर दी है। ट्रस्ट के गठन की मंजूरी के लिए जिला कलेक्टर को प्रस्ताव भेजा जा चुका है। ट्रस्ट का गठन होने के बाद इसकी अधिसूचना, जमीन के कागजात व प्रोजेक्ट रिपोर्ट को केंद्र सरकार को भिजवाया जाएगा। इसके बाद योजना के तहत अनुदान की मंजूरी मिलेगी।

ऎसे काम करेगा प्लांट

सभी इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को पाइप के सहारे एक निचली जगह बने गड्ढे में इकट्ठा किया जाएगा। इसके बाद उसे ट्रीटमेंट प्लांट तक पम्प किया जाएगा। ट्रीटमेंट प्लांट में गंदे पानी को मथकर पहले कचरा निकाला जाएगा। इसके बाद पानी में क्लोरीन व ओजोन आदि रासायनिकों से साफ किया जाएगा। इस प्रक्रिया में करीब पांच प्रतिशत ठोस कचरा बनेगा, जिसे सावधानी पूर्वक निस्तारित किया जाएगा। ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाला पानी रिसाइकिल होगा, ऎसे में उसका उपयोग कपड़े धोने, नहाने व सिंचाई में किया जा सकेगा।

लागत 46 करोड़

ट्रीटमेंट प्लांट पर करीब 46 करोड़ का खर्च आने की संभावना है। ट्रीटमेंट प्लांट बनने में करीब एक साल लगने की संभावना है और इसके बाद यह दो से तीन साल में चालू होगा।

दो जगह जमीन देखी

ट्रीटमेंट प्लांट के लिए करीब 40 एकड़ जमीन चाहिए। सांगानेर कपड़ा रंगाई-छपाई एसोसिएशन के सचिव राजेंद्र जींदकर ने बताया कि प्लांट के लिए दो जगह जमीन ढूंढ़ी है। एक जयपुर की तरफ सांगा सेतु के आगे नीचे की तरफ तथा दूसरी मुहाना मोड़ के पास। जमीन अलॉटमेंट की प्रक्रिया चल रही है, संभवतया एक सप्ताह में पूरी हो जाएगी।

इंफ्रास्ट्रक्चर लैंडिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज ने डीपीआर तैयार की है, जो हमें एक-दो दिन में मिलने की संभावना है। हमारा प्रयास है कि ट्रीटमेंट प्लांट जल्द बनकर तैयार हो।पी.के. जैन, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र

डीपीआर बन गई है और ट्रस्ट बनने के बाद इसे मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भिजवाया जाएगा। जहां तक जमीन का मामला है जेडीए से बात चल रही है। देवीशंकर, अध्यक्ष, सांगानेर कपड़ा रंगाई-छपाई एसोसिएशन

विष्णु शर्मा

Sunday, August 29, 2010

सांगानेरी प्रिंट को राहत की उम्मीद

जयपुर. सांगानेर की हैंड ब्लॉक प्रिंट को जीआई सर्टिफिकेट मिलने से सांगानेरी प्रिंट बेडशीट व कपड़ा तैयार करने वाली करीब छह सौ इकाइयों को राहत मिलने की उम्मीद है। उल्लेखनीय है कि करीब छह महीने से सांगानेरी प्रिंट बेडशीट व कपड़े के कारोबार में पचास फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

इसकी एक वजह राजस्थान के जोधपुर व पाली और अहमदाबाद में सांगानेरी प्रिंट छपाई का कारोबार फलना-फूलना है। लेकिन जीआई सर्टिफिकेट मिलने से अब दूसरे शहरों में सांगानेरी प्रिंट कपड़े के कारोबार पर रोक लगने की उम्मीद की जा रही है। इससे सांगानेर की इकाइयों के कारोबार हालात में सुधार की उम्मीद बंधी है। सागांनेर कपड़ा रंगाई-छपाई एसोसिएशन के महामंत्री राजेंद्र जीनगर का कहना है कि पिछले साल दुनिया भर में छाई आर्थिक सुस्ती से सांगानेरी प्रिंट बेड शीट व कपड़े कारोबार करने वाली इकाइयां अब तक नहीं उबर पाई है। इससे पिछले छह महीनों के दौरान इन इकाइयों का कारोबार पचास फीसदी तक घट गया है।

इसकी एक वजह जोधपुर व पाली और अहमदाबाद में भी सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंट का होना है। इसके चलते जयपुर में सांगानेरी प्रिंट इकाइयों के कारोबार पर असर पड़ा है। यह देखते हुए सांगानेर हैंड ब्लॉक प्रिंट को जीआई सर्टिफिकेट मिलने से सांगानेर स्थित करीब छह सौ इकाइयों को राहत मिलने की उम्मीद है।

सांगानेर की प्रिंटिंग इकाइयों का मुश्किल दौर होगा खत्म

बुधवार,28 अप्रैल, 2010 को बिजनेस भास्कर जयपुर
प्रदूषित पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट का रास्ता होने से सांगानेर की प्रिटिंग इकाइयों की मुश्किलों का दौर समाप्त होने के आसार हो गए हैं। ट्रीटमेंट प्लांट के लिए इस सप्ताह शुक्रवार तक डीपीआर मिलने की उम्मीद है। इसके बाद ट्रीटमेंट प्लांट का काम भी जल्दी शुरू हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने से सरकार ने इन इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं दी थी। इसके चलते इन इकाइयों को बैंकों से ऋण भी नहीं मिल पा रहा था लेकिन अब ट्रीटमेंट प्लांट लगने के बाद समस्याएं समाप्त हो जाएगी।

सांगानेर कपड़ा रंगाई-छपाई एसोसिएशन के महासचिव राजेंद्र जीनगर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला हक में आने के बावजूद काफी समय तक ट्रीटमेंट प्लांट की फाइल दो विभागों के बीच फुटबाल बनी रही थी। बिजनेस भास्कर ने भी इस समस्या को उठाया था। इसके चलते अब ट्रीटमेंट प्लांट की स्थपना का रास्ता खुल गया है। ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने वाली कंपनी आईआईएलएफ वाटर लिमिटेड ने डीपीआर तैयार कर ली है। डीपीआर शुक्रवार तक एसोसिएशन को मिल जाएगी। इसके बाद एसोसिएशन यह देखेगी कि डीपीआर इकाइयों की जरूरत के मुताबिक है या नहीं। और फिर इसको मंजूरी के लिए राज्य सरकार के पास भिजवा दिया जाएगा। प्लांट को मंजूरी मिलने के साथ ही ट्रीटमेंट प्लांट का काम शुरू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि सांगानेर में प्रस्तावित ट्रीटमेंट प्लांट पर अनुमानित 46 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इसके लिए केंद्र सरकार से अनुदान भी मिलेगा। वहीं कुछ राशि राज्य सरकार और उद्यमी वहन करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रीटमेंट प्लांट के लिए तीन साल का समय दिया है।

उन्होंने बताया कि ट्रीटमेंट प्लांट के लिए जयपुर विकास प्राधिकरण ने मुहान मोड पर छह बीघा और सांगा सेतु के पास पांच बीघा जमीन चिंहित की है। हालांकि इन स्थानों पर कुछ थोड़ी जमीन पर अतिक्रमण है। लेकिन यह चिंता की बात नहीं है, क्योंकि इसको हटाने का जिम्मा प्राधिकरण का है। उन्होंने बताया कि 15 वर्ष पहले प्रदूषित पानी की समस्या को लेकर एक जन हित याचिक दायर की गई थी। लगभग नौ वर्ष तक यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट में चला था। हाईकोर्ट ने इन इकाइयों के खिलाफ फैसला सुनाया था, लेकिन उद्यमियों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी। इसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2009 में सांगानेर की इकाइयों के हक में फैसला सुना दिया था और इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दिए थे।

इसके चलते ही प्रदूषित पानी के लिए सांगानेर में दो ट्रीटमेंट प्लांट लगाना तय हुआ है। इनके लगने के बाद सांगानेर की इकाइयों को भू-उपयोग बदलने की अनुमति मिल जाएगी। इससे इकाइयों की मुश्किलें भी समाप्त हो जाएगी। सांगानेर में करीब छह सौ इकाइयां हैं। इन इकाइयों में दुनिया भर में प्रसिद्ध सांगोनरी प्रिंट छपाई व रंगाई का काम किया जाता है। सांगानेरी प्रिंट कपड़े का उपयोग बेडशीट बनाने के साथ गारमेंट में होता है। इनका सालाना कारोबार लगभग सात सौ करोड़ रुपये हैं, जबकि सालाना तीन सौ करोड़ रुपये की सांगानेरी प्रिंट बेडशीट और गारमेंट का निर्यात किए जा रहे हैं।

बात पते की
ट्रीटमेंट प्लांट न होने से इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं थी। इसके चलते इन इकाइयों को बैंकों से ऋण भी नहीं मिल पा रहा था।

सरकार की ढिलाई से सांगानेर प्रिंट इकाइयां मुश्किल में

Source: बिजनेस भास्कर जयपु | Last Updated 00:52(04/02/10)

सुप्रीम कोर्ट का फैसला हक में आने के बावजूद सांगनेर में लगी रंगाई-छपाई इकाइयां मुश्किल दौर से गुजर रही हैं। सरकार ने इन इकाइयों को अब तक भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं दी है। इस कारण इन इकाइयों को वित्तीय जरूरत पूरी करने के लिए बैंकों से ऋण भी नहीं मिल पा रहा है। उल्लेखनीय है कि सागांनेरी प्रिंट इकाइयां चलाने वाले उद्यमियों ने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने लिए तीन महीने पहले फाइल बनाकर जयपुर विकास प्राधिकरण को सौंप दी थी, लेकिन तीन महीने से यह फाइल दो विभागों के बीच फुटबाल बनी हुई है।

सांगानेर कपड़ा रंगाई-छपाई एसोसिएशन के महासचिव राजेंद्र जिनगर ने बताया कि करीब 15 वर्ष पहले प्रदूषित पानी निकलने की समस्या को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। करीब नौ वर्ष तक यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट में चला और हाई कोर्ट ने इन इकाइयों के खिलाफ फैसला सुना दिया था, लेकिन उद्यमियों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी। इसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2009 में सांगानेर की इकाइयों के हक में फैसला सुना दिया था और इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दिए थे। इन इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित पानी के लिए सांगानेर में दो प्लांट लगाना तय किया है।

इन प्लांटों पर कुल 33 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इस लागत की 75 फीसदी राशि केंद्र सरकार और 10 फीसदी राशि राज्य सरकार को वहन करनी है। शेष राशि उद्यमियों को लगानी है। यह प्लांट लगने के बाद ही सांगानेर की इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति मिलनी है। लेकिन उद्यमियों की तमाम कोशिशों के बावजूद न तो ट्रीटमेंट प्लांट लग पाया है और ना ही भू उपयोग बदलने की अनुमति मिल सकी है। इसके चलते सांगानेर की इकाइयों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि इन इकाइयों में दुनिया भर में प्रसिद्ध सांगोनरी प्रिंट की छपाई व रंगाई का काम किया जाता है। सांगानेरी प्रिंट कपड़े का उपयोग बेड शीट बनाने के साथ गारमेंट में भी होता है।

इनका कुल कारोबार सालाना लगभग सात सौ करोड़ रुपये हैं, जबकि तीन सौ करोड़ मूल्य की सांगानेरी प्रिंट बेड शीट और गारमेंट का निर्यात किया जा रहा है। लेकिन पिछले वर्ष दुनिया भर में आर्थिक सुस्ती की वजह से निर्यात और घरलू कारोबार प्रभावित होने से सांगानेर स्थित इकाइयों की वित्तीय हालात खराब हो गई है, जबकि औद्योगिक भूमि में नहीं होने से इन इकाइयों को बैंकों से लोन भी नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने बताया कि उद्यमी लगातार सरकार को समस्याओं से अवगत करा रहे हैं।

लेकिन जयपुर विकास प्राधिकरण व उद्योग विभाग के ढीले रवैये के कारण इन इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं मिल सकी है। अब यह दोनो विभाग यह कह रहे हैं, कि जब तक ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लग जाता है भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं मिलेगे। दूसरी तरफ ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए आई.आई.एल.एफ वाटर लिमिटेड ने सर्वे का काम पूरा कर लिया है। यह अपनी रिपोर्ट इसी महीने सौंप देगी।
फिर भी सरकार के मौजूदा रवैये को देखते ट्रीटमेंट प्लांट लगने में डेढ़ वर्ष का समय लगने का अनुमान है। इस वजह से यह उद्यमी चिंता में घिर हुए हैं।

Saturday, August 28, 2010

सांगानेर प्रिंट इकाइयों पर संकट

Source: Bhaskar network | Last Updated 02:43(29/08/10)
जयपुर. पर्यावरण मापदंडों पर खरा नहीं उतरने के कारण प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से सांगानेरी प्रिंटिंग इकाइयों को बंद करने के नोटिस पर अब अमेरिका, इंग्लैंड में भी चिंता महसूस की जा रही है।

इन देशों में रहने वाले कई राजस्थानी प्रदेश की शान माने जाने वाले जयपुर के इस उद्योग पर आए संकट से आहत हैं। इन प्रवासियों ने सरकार से इस मामले में हल निकालने की गुजारिश की है। इधर प्रदूषण नियंत्रण मंडल का कहना है कि संचालकों की ओर से तय अवधि में ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का शपथ पत्र दिए जाने के बाद इस मामले में विकल्प तलाशे जाएंगे। भास्कर में शनिवार को प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से 750 इकाइयों को नोटिस जारी होने की खबर पर दिनभर हडकंप मचा रहा।

न्यूयॉर्क में रहने वाली जयपुर की रुचि अग्रवाल ने बताया कि प्रिंट उद्योग को महज ट्रीटमेंट प्लांट का हवाला देकर बंद करने जैसा फैसला उचित नहीं हैं। क्यों नहीं सरकार ट्रीटमेंट प्लांट तैयार करवा ले और संचालकों को अन्य नॉर्म्स के पालन के लिए पाबंद कर दे। वे इस मामले पर राज्य सरकार को भी पत्र लिख रही हैं। यहीं की हीना अग्रवाल का कहना है कि छपाई की इन यूनिटों के कारण जयपुर की देश विदेश में पहचान है और प्रदूषण न फैलने को लेकर सरकार को पॉलिसी बनानी चाहिए।

इधर सांगानेर रंगाई छपाई से जुड़े संचालकों ने राज्य सरकार के समक्ष शपथ पत्र देकर यथासंभव जल्द ट्रीटमेंट प्लांट तैयार करने का प्रस्ताव देने की योजना बनाई है। एसोसिएशन के महासचिव राजेंद्र जींदगर का कहना है कि इस मामले में वे सामूहिक बैठक कर सोमवार को प्रदूषण नियंत्रक मंडल के सामने अपना पक्ष रखेंगे। उन्होंने बताया कि सरकार के एक तरफा फैसले से उद्योग से जुड़े लोगों में जबर्दस्त नाराजगी है।

फैक्ट्री संचालक शपथ पत्र देकर सरकार को विश्वास दिलाते हैं तो विकल्प के बारे में सोचा जा सकता है। यदि सरकार को उचित लगा तो समय सीमा दी जा सकती है। इन्हें कोर्ट और मंडल के नियमों को हर हाल में फॉलो करना होगा जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं हो। - डी.एन. पांडेय, मेंबर सेक्रेट्री, प्रदूषण नियंत्रण मंडल

सरकार ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई तो लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। पर्यावरण के लिए क्षेत्रवासी भी चिंतित हैं और ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के प्रयास जारी हैं। सरकार को तुरंत प्रभाव से नोटिस वापस लेने चाहिए। वरना जयपुर की पहचान खत्म हो जाएगी। - घनश्याम तिवाड़ी, सांगानेर विधायक

Friday, August 27, 2010

Sanganneri print सांगानेरी प्रिंट उद्योग के सहारे जीवनयापन करने वाले करीब तीन लाख लोगों के रोजगार पर संकट खड़ा हो गया है।

जयपुर. जयपुर के विश्वप्रसिद्ध सांगानेरी screen प्रिंट उद्योग के सहारे जीवनयापन करने वाले करीब तीन लाख लोगों के रोजगार पर संकट खड़ा हो गया है।

पर्यावरण मापदंडों पर खरा नहीं उतरने के कारण प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 750 रंगाई-छपाई फैक्ट्री मालिकों को फैक्ट्री बंद करने के नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है। बिजली कंपनी एवं जलदाय विभाग को इन फैक्ट्रियों के बिजली—पानी के कनेक्शन काटने को कहा गया है। मंडल ने जिला कलेक्टर को फैक्ट्री बंद नहीं करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को भी लिख दिया है। क्षेत्र में पर्यावरण को खतरा बढ़ता देखकर मंडल ने अपनी अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है।

मंडल का मानना है कि ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने से रंगाई-छपाई के बाद बहने वाला पानी पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। इससे भी बड़ा खतरा इस पानी के उपयोग से पैदा होने वाले फल-सब्जी तथा फसलों के उपयोग से होने वाले विभिन्न जानलेवा रोग हैं। मंडल के सदस्य सचिव डी.एन. पांडेय बताते हैं कि फैक्ट्री संचालकों की गंभीरता नहीं देखते हुए सरकार ने सख्त कदम उठाने का फैसला किया है।

सरकार उद्योगों को संरक्षण देना चाहती है, लेकिन पर्यावरण को बनाए रखना भी हर कीमत पर जरूरी है। इधर फैक्ट्रियां बंद करने के नोटिस मिलने के साथ ही फैक्ट्री संचालकों में हड़कंप मच गया है। करीब 50 साल पुराने इस रंगाई-छपाई उद्योग के कई संचालकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध किया है। संचालकों का कहना है कि पानी का प्रदूषण सांगानेर ही नहीं, कई इलाकों में है। ट्रीटमेंट प्लांट को भी जल्द ही लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

फैक्ट्रियों में ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने से रंगाई-छपाई के उपयोग में आना वाला पानी क्षेत्र में पर्यावरण को जबर्दस्त नुकसान पहुंचा रहा है। मंडल ने सख्त रवैया अपनाते हुए फैक्ट्री बंद करने के नोटिस जारी किए हैं। फिलहाल इसके लिए समय सीमा तय नहीं की गई है। - डी.एन. पांडेय, सदस्य सचिव, राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल

सरकार ने यदि संवेदनशीलता नहीं दिखाई तो लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। पर्यावरण के लिए क्षेत्रवासी भी चिंतित हैं और ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के प्रयास जारी हैं। सरकार को तुरंत प्रभाव से नोटिस वापस लेने चाहिए। - घनश्याम तिवाड़ी, पूर्व मंत्री एवं स्थानीय विधायक

सरकार ने सख्ती की तो आंदोलन करेंगे

फैक्ट्री बंद करने के नोटिस जारी होने से तीन लाख लोगों को रोजगार का खतरा पैदा हो गया है। यदि सख्ती की गई तो आंदोलन किया जाएगा। पानी के ट्रीटमेंट के लिए कॉमन एफिलेंट ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के प्रयास जारी हैं। मुख्यमंत्री को मामले के समाधान की गुजारिश की गई है। - राजेंद्र जीनगर, अध्यक्ष, सांगानेर रंगाई-छपाई एसोसिएशन

Dainik bhaskar front page date 28/08/10

.....................सांगानेर की प्रिंटिंग इकाइयों का मुश्किल दौर होगा खत्म..........................


प्रदूषित पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट का रास्ता होने से सांगानेर की प्रिटिंग इकाइयों की मुश्किलों का दौर समाप्त होने के आसार हो गए हैं। ट्रीटमेंट प्लांट के लिए इस सप्ताह शुक्रवार तक डीपीआर मिलने की उम्मीद है। इसके बाद ट्रीटमेंट प्लांट का काम भी जल्दी शुरू हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने से सरकार ने इन इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं दी थी। इसके चलते इन इकाइयों को बैंकों से ऋण भी नहीं मिल पा रहा था लेकिन अब ट्रीटमेंट प्लांट लगने के बाद समस्याएं समाप्त हो जाएगी।

सांगानेर कपड़ा रंगाई-छपाई एसोसिएशन के महासचिव राजेंद्र जीनगर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला हक में आने के बावजूद काफी समय तक ट्रीटमेंट प्लांट की फाइल दो विभागों के बीच फुटबाल बनी रही थी। बिजनेस भास्कर ने भी इस समस्या को उठाया था। इसके चलते अब ट्रीटमेंट प्लांट की स्थपना का रास्ता खुल गया है। ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने वाली कंपनी आईआईएलएफ वाटर लिमिटेड ने डीपीआर तैयार कर ली है। डीपीआर शुक्रवार तक एसोसिएशन को मिल जाएगी। इसके बाद एसोसिएशन यह देखेगी कि डीपीआर इकाइयों की जरूरत के मुताबिक है या नहीं। और फिर इसको मंजूरी के लिए राज्य सरकार के पास भिजवा दिया जाएगा। प्लांट को मंजूरी मिलने के साथ ही ट्रीटमेंट प्लांट का काम शुरू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि सांगानेर में प्रस्तावित ट्रीटमेंट प्लांट पर अनुमानित 46 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इसके लिए केंद्र सरकार से अनुदान भी मिलेगा। वहीं कुछ राशि राज्य सरकार और उद्यमी वहन करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रीटमेंट प्लांट के लिए तीन साल का समय दिया है।

उन्होंने बताया कि ट्रीटमेंट प्लांट के लिए जयपुर विकास प्राधिकरण ने मुहान मोड पर छह बीघा और सांगा सेतु के पास पांच बीघा जमीन चिंहित की है। हालांकि इन स्थानों पर कुछ थोड़ी जमीन पर अतिक्रमण है। लेकिन यह चिंता की बात नहीं है, क्योंकि इसको हटाने का जिम्मा प्राधिकरण का है। उन्होंने बताया कि 15 वर्ष पहले प्रदूषित पानी की समस्या को लेकर एक जन हित याचिक दायर की गई थी। लगभग नौ वर्ष तक यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट में चला था। हाईकोर्ट ने इन इकाइयों के खिलाफ फैसला सुनाया था, लेकिन उद्यमियों ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी। इसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2009 में सांगानेर की इकाइयों के हक में फैसला सुना दिया था और इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के निर्देश दिए थे।

इसके चलते ही प्रदूषित पानी के लिए सांगानेर में दो ट्रीटमेंट प्लांट लगाना तय हुआ है। इनके लगने के बाद सांगानेर की इकाइयों को भू-उपयोग बदलने की अनुमति मिल जाएगी। इससे इकाइयों की मुश्किलें भी समाप्त हो जाएगी। सांगानेर में करीब छह सौ इकाइयां हैं। इन इकाइयों में दुनिया भर में प्रसिद्ध सांगोनरी प्रिंट छपाई व रंगाई का काम किया जाता है। सांगानेरी प्रिंट कपड़े का उपयोग बेडशीट बनाने के साथ गारमेंट में होता है। इनका सालाना कारोबार लगभग सात सौ करोड़ रुपये हैं, जबकि सालाना तीन सौ करोड़ रुपये की सांगानेरी प्रिंट बेडशीट और गारमेंट का निर्यात किए जा रहे हैं।

बात पते की
ट्रीटमेंट प्लांट न होने से इकाइयों को भू उपयोग बदलने की अनुमति नहीं थी। इसके चलते इन इकाइयों को बैंकों से ऋण भी नहीं मिल पा रहा था।

Dainik bhaskar jaipur 28 अप्रैल 2010

Threat to unique block prints अद्वितीय सांगानेरी ब्लॉक प्रिंट के लिए खतरा

हाथ ब्लॉक छपाई भारत में सदियों पुरानी परंपरा है.लगभग 500 वर्ष पुराना है,हाथ ब्लॉक छपाई शिल्प एक विरासत के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.हाथ ब्लॉक छपाई में सीमित उत्पादन और गहन मानव इनपुट है,

सीमित पानी,, प्राकृतिक रंजक के साथ बना,एक ब्रांड नाम हैं,परंपरागत शैली के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता है.

ब्लॉक प्रिंट सांगानेर में कार्यरत 150 units लगभग 3000 परिवारों को रोजगार प्रदान करते हैं.20,000 लोग सीधे इस शिल्प पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर है.

सांगानेरी ब्लॉक प्रिंट में सीमित पानी की आवश्यकता होती है,प्रदूषण प्रबंधनीय सीमा के भीतर है. "Azo मुक्त रसायनों का प्रयोग, प्राकृतिक रंजक, यह पर्यावरण के अनुकूल है.

स्क्रीन प्रिंटिंग इस क्षेत्र के मुख्य प्रदूषक हैं,तो फिर hand block printers को क्यों दंडित किया जाना चाहिए?

Brij Ballabh Udaiwal ( National awarded artisan )
Shilpi
6/46 Near Silibery
Sanganer,
Pin-302029
Jaipur
01412731106
brij_ballabh@yahoo.co.uk
shilpihandicraft.com
prakhyastores.com
+919314505805

Monday, August 23, 2010

Pollution potential Studies at Small Scale Textile, Dyeing and Printing Units at Sanganer, Jaipur (Rajasthan)

Pollution potential Studies at Small Scale Textile, Dyeing and Printing Units at Sanganer, Jaipur (Rajasthan)

Sanganer town is situated at outskirt of Jaipur and known for its textile (bed-sheets) dying and printing at twelve clusters of small-scale industries. The main process involved in textile processing units are de-sizing, bleaching, dying, screen printing and post-print washing. Most of the industries have been using rapid indigo, direct aniline black dyes however, none of the industry has any effluent treatment plant. The untreated industrial wastewater along with untreated domestic sewage may be seen accumulated in many areas in absence of proper drainage. Sometimes, the wastewater joins local nullah/canal through kuchcha drains. The possibility of percolation of coloured effluent resulting into groundwater pollution is quite high.

The proposal of installation of CETP in different clusters mooted by RSPCB was not accepted either, by the industries and their association due to high capital and operational cost. Legal action has been launched by State Pollution Control Board against these industries.

The pollution potential assessment studies have been undertaken by CPCB Zonal Office – Bhopal to assess the pollution generated by the industries in different clusters in Sanganer town and to find out a viable solution for pollution control. The findings and major recommendations of the study include the following:

o Out of the total 450 units, desizing is undertaken at 39 units, bleaching in 76, dyeing in 120; printing and screen washing at 257 and post-print washings at 75 units either independently or in combination of two or more unit processes. These unit processes are generating wastewater.

o Maximum number of industries are located in the Mohana road areas, Jaipur Gate, Diggimalpura road, Khatri Nagar & Shikarpura road. The wastewater from these industrial units is discharged either into Amanishah nullah or Newtha canal or Chandlai canal. Amanishah nullah is a natural drain carrying sewage from south Jaipur. The wastewater from two canals is used for irrigation.

o Total industrial wastewater discharge from the industries located in the catchment of Amanishah nullah, has been calculated as 14.95 mld which is only 5% of total city sewage flowing into the nullah.

o The construction of sewage treatment plant (STP) and lying of sewer lines is being undertaken in southern Jaipur. The construction of sewer line has been completed upto Bambala pulai (at Tonk road).

o The process (batch process) like dyeing and washing of screens, discharges high TDS and COD bearing effluents. Desizing unit process produces effluents with high conductivity, TDS, COD, BOD & Chlorides. Bleaching unit process also produced high conductivity, TDS, COD & Chloride bearing wastewater while post-print washing process waste contained high COD & Chloride.

o Characterization of wastewater from the major drains has also been carried out for important pollutants like TDS, Conductivity, Chloride, COD & BOD. Phenol has been found very high in Khatri Nagar, Mohana road area.

o Groundwater samples from different localities in clusters where wastewater was discharged on open land, indicated high Conductivity and TDS.

o The total wastewater discharge from the six clusters of industries is 38.98 mld while 14.95 mld joins to Amanishah nullah and 24.03 mld to Newtha and Chandlai canal. The pollution load being contributed through major drains from Mohana road, Ramsinghpura (Shikarpura) and Khatri Nagar areas respectively.

o The total industrial wastewater discharge estimated as 49.92 mld added through seven industrial clusters. The pollution load in terms of BOD was estimated as 14827 kg/d and TSS as 10861 kg/d. It was estimated that total 59 mld mixed wastewater added into receiving water bodies such as Amanishah nullah, Newtha canal and Chandlai canal.

Most of the industries are very small spread in twelve clusters and cannot afford individual ETPs. CETP may not be viable solution especially in the clusters having lesser number of industries, which can share the cost of CETP and its operation. Besides, providing twelve CETPs in a small town appears uneconomical and non-viable. The Public Health Engineering Department has planned to provide elaborate wastewater collection system in the area terminating into sewage treatment plant. The scheme for acceptance of industrial effluent into public sewer may be undertaken by local authorities based on "Sewer Regulations" of Gujarat State.

Saturday, August 21, 2010

प्रदूषण के सांगानेर कस्बे में स्थिति चिंताजनक हो गई है.

यह एक अपराध है,

Discharge of polluted trade effluent from Sanganer based textile screen printing industrial plants, the underground water in the Sanganer town of the city of Jaipur, has been contaminated. Situation of pollution in the sanganer town has become alarming.

Forthwith, close down textile screen printing industrial plants at Sanganer town. This is a criminal offence,punishable with imprisonment for a term which shall not be less than one year and six month but which may extend to six years and with fine.